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JAC Board Class 10 Important Nibandh 2025

Last Updated on 15, December 2024 by JAC Rankers

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JAC Board Class 10 Important Nibandh 2025 :

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💥 JAC Board Class 10 Important Nibandh 2025 :

Top 5 Most Important Nibandh

हमारा राज्य झारखंड / मेरा राज्य झारखंड  [2009,2012,2015,2017,2019,23]

हमारा नया राज्य झारखंड है । झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 ई को हुआ । बिहार के दक्षिणी भाग को अलग करके झारखंड राज्य बनाया गया है । झारखंड का अर्थ होता है झार – झंखारों और खनिज संपदा वाला क्षेत्र । झारखंड राज्य के अधिकांश क्षेत्रों में झार – झंखार और खनिज संपदा फैले हुए हैं । यह भारत का 28 वां राज्य है ।

झारखंड राज्य के उत्तर में बिहार है । इसके दक्षिण में उड़ीसा राज्य है । इसके पूरब में पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश से राज्य हैं । इस राज्य की लंबाई पूर्व से पश्चिम की ओर 380 किलोमीटर है तथा इसकी चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की ओर 463 किलोमीटर है ।

झारखंड राज्य की राजधानी रांची है । रांची एक बहुत बड़ा शहर है । झारखंड राज्य में रांची, जमशेदपुर, दुमका, बोकारो, धनबाद, आदि बड़े शहर है । झारखंड आदिवासियों का क्षेत्र है । यहां उरांव, संथाल, मुंडा, आदि आदिवासी जातियां रहती है । यहां संथाली, मुंडारी, हो, बांग्ला एवं हिंदी भाषाएं बोली जाती है ।

झारखंड राज्य की जमीन पथरी और पथरी ली है । यहां पर खेती के लायक जमीन बहुत ही कम है । यहां ज्यादातर धान और गेहूं की खेती होती है । धान यहां की प्रमुख फसल है । झारखंड राज्य में खनिजों का भंडार है । भारत में सबसे अधिक खनिज झारखंड में ही पाया जाता है । यहां कोयले के बड़े-बड़े भंडार हैं । यहां लोहे के बड़े-बड़े उद्योग फैले हैं । जमशेदपुर में लोहा का सबसे बड़ा कारखाना है । झारखंड में बहुत से धर्मशाला भी हैं । देवघर में बैद्यनाथ धाम दुमका में बासुकीनाथ धाम एवं रजरप्पा चुटिया का मंदिर पारसनाथ जैसे तीर्थ स्थल है । इसके अलावा कई दर्शनीय स्थल भी है , जो झारखंड राज्य की सुंदरता को और बढ़ाती है ।


2. बिरसा मुण्डा

[2009,16,18,20,22, M.SET-22]

बिरसा मुण्डा को झारखंड राज्य में बहुत आदर एवं सम्मान प्राप्त है । वे आदिवासियों के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे । बिरसा मुण्डा का जन्म खूंटी के अड़की प्रखंड स्थित उलीहातु में 15 नवम्बर, 1875 ई. को हुआ । इनकी माता का नाम करमी और पित्ता का नाम सुगना मुण्डा था। बिरसा मुण्डा का जन्म एक अत्यंत निर्धन परिवार में हुआ था। इनके पिता ने निर्धनता के कारण ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया । सलगा स्कूल से इन्होंने शिक्षा शुरू की। प्राथमिक शिक्षा के बाद अपर प्राइमरी की शिक्षा के लिए बुंडु मिशन स्कूल में अपना दाखिला लिया। भूमि आन्दोलन के समय इनका मिशनरी से मतभेद हो गया और उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। फिर चाईबासा में रहकर इन्होंने उच्च प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की।
बिरसा अपनी आजीविका के लिए गौरबेड़ा के स्वामी परिवार में नौकरी करने लगे। इनके मालिक का नाम आनन्द पांडे था। आनन्द वैष्णव धर्म मानते थे। इनके सम्पर्क में बिरसा पूर्णतः वैष्णव हो गये। वह जनेऊ, खड़ाऊँ और हल्दी के रंग में रंगी थोती पहनने लगे। वे गांव के लोगों की सेवा में लग गये। लोगों को रोगमुक्त करने के लिए प्रार्थना करते और मंत्र जाप करते । मांस खाना छोड़ दिया। गो-वध रुकवाया। तुलसी की पूजा करते और माथे पर चंदन-टीका लगाते। वे एक विशाल आम-वृक्ष के नीचे बैठकर लोगों को दवा देते और उपदेश देते- ईश्वर एक है, भूत-प्रेत मत मानो, पूजा में बलि बन्द करो, हिंसा मत करो, सफेद ध्वज फहराओ, झूठ मत बोलो, चोरी मत करो, एकता बनाये रखो इत्यादि । लोग इनके प्रवचन को सुनते और एक साथ भजन करते । जनता में बिरसा अत्यंत लोकप्रिय हो गये और दूर-दूर से लोग इनके दर्शन के लिए आने लगे। इससे ईसाई मिशनरियों में इनके प्रति क्रोध और ईर्ष्या की भावना पनपने लगी।

आरंभ में बिरसा का आन्दोलन सुधारवादी का था, किन्तु बाद में यह अंग्रेजों से स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में विकसित हो गया। बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल के बाहर इनके अनुयायी इनके विचारों का प्रचार कर रहे थे । 1897 ई. में ये जेल से रिहा हुए । बिरसा स्वयं शान्तिपूर्वक तरीके से क्रान्ति लाना चाहते थे, इनके अनुयायियों ने हिंसा तथा बलपूर्वक आन्दोलन चलाने की माँग की।

परिणामस्वरूप विद्रोह शुरू हुआ और अनेक स्थानों पर हलचल मच गयी । पुलिस कर्मचारियों को मारा गया और पुलिस स्टेशन को नुकसान पहुँचाया गया। बिरसा मुण्डा के साथ मुण्डा लोगों ने खूँटी थाने को जला दिया और एक सिपाही की हत्या कर दी। बिरसा की गिरफ्तारी के लिए 500 रुपये का ईनाम रखा गया। इसके विपरीत कुछ लोगों ने ईनाम क लालच में छल किया और एक रात जंगल में सोते हुए इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी मृत्यु जेल में हैजा होने से 9 जून 1900 ई. को हुई। वे एक आन्दोलनकारी थे जिन्होंने आदिवासियों को एकजुट होकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया था।


3. समय का सदुपयोग

[11,12,17, 23, 24 M.SET-23]

अंग्रेजी की पंक्ति है-Time is money and Time is gold. इस पंक्ति से यह स्पष्ट होता है कि समय का कितना महत्त्व है ।
 फ्रैंकलिन का कथन है- “तुम्हें अपने जीवन से प्रेम है, तो समय को व्यर्थ मत गँवाओ, क्योंकि जीवन इसी से बना है” समय को नष्ट करना जीवन को नष्ट करना है । समय ही तो जीवन है। ईश्वर एक बार एक ही क्षण देता है और दूसरा क्षण देने से पहले उसको छीन लेता है। समय ही एक ऐसी वस्तु है जिसे खोकर पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता । समय का कोई मोल नहीं हो सकता । श्रीमन्नारायण ने लिखा है- “समय धन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है । हम रुपया-पैसा तो कमाते ही हैं और जितना अधिक परिश्रम करें उतना ही अधिक धन कमा सकते हैं। परन्तु क्या हजार परिश्रम करने पर भी चौबीस घण्टों में एक भी मिनट बढ़ा सकते हैं ? इतनी मूल्यवान वस्तु का धन से फिर क्या मुकाबला ।” इससे समय की महत्ता पर स्पष्ट प्रकाश पड़ता है ।

समय के सदुपयोग का अर्थ है-उचित अवसर पर उचित कार्य पूरा कर लेना। जो लोग आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालते रहते हैं, वे एक प्रकार से अपने लिए जंजाल खड़ा करते चले जाते हैं। मरण को टालते-टालते एक दिन सचमुच मरण आ ही जाता है। जो व्यक्ति उपयुक्त समय पर कार्य नहीं करता, वह समय को नष्ट करता है। एक दिन ऐसा आता है, जबकि समय उसको नष्ट कर देता है । जो छात्र पढ़ने के समय नहीं पढ़ते, वे परिणाम आने पर रोते हैं।

समय रुकता नहीं। जिसको उसका लाभ उठाना है, उसे तैयार होकर उसके आने का अग्रिम इन्तजार करना चाहिए। जो समय के निकल जाने पर उसके पीछे दौड़ते हैं, वे जिन्दगी में सदा घिसटते-पिटते रहते हैं। समय सम्मान माँगता है।

जो जाति समय का सम्मान करना जानती है, वह अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेती है। यदि सभी गाड़ियाँ अपने निश्चित समय से चलने लगें तो देश में कितनी कार्यकुशलता बढ़ जायेगी। यदि कार्यालय के कार्य ठीक समय पर सम्पन्न हो जाएँ, कर्मचारी समय के पाबन्द हों तो सब कार्य सुविधा से हो सकेंगे। यदि रोगी को ठीक समय पर दवाई न मिले तो उसकी मौत भी हो सकती है। अतः हमें समय की गम्भीरता को समझना चाहिए। गाँधीजी एक मिनट देरी से आने वाले व्यक्ति को क्षमा नहीं करते थे । आप ही सोचिए, सृष्टि का यह चक्र कितना नियमित है, कितना समय का पाबन्द है ? यदि एक भी दिन धरती अपनी धुरी पर घूमने में देरी कर जाए तो परिणाम क्या होगा ? विनाश और महाविनाश ! अतः हमें समय की महत्ता को समझना चाहिए तथा सारे काम समय पर निबटाने चाहिए ।


4. परोपकार [2011,2017,2023]
परोपकार दो शब्दों के मेल से बना है – पर + उपकार। इसका अर्थ है – दूसरों की भलाई करना। गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- .परहिस सरिस धर्म नहिं भाई।. अर्थात्‌ परोपकार सबसे बड़ा धर्म है। मैथिलीशरण गुप्त जी भी यही कहते हैं –
मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे,
यह पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे।

परोपकार एक सामाजिक भावना है। इसी के सहारे हमारा सामाजिक जीवन सुखी और सुरक्षित रहता है। परोपकार की भावना से ही हम अपने मित्रों, साथियों, परिचितों और अपरिचितों की निष्काम सहायता करते हैं। प्रकृति हमें परोपकार की शिक्षा देती है। सूर्य हमें प्रकाश देता है, चंद्रमा अपनी चाँदनी छिटकाकर शीतलता प्रदान करता है, वायु निरंतर गति से बहती हुई हमें जीवन देती है तथा वर्षा का जल धरती को हरा-भरा बनाकर हमारी खेती को लहलहा देता है। प्रकृति से परोपकार की शिक्षा ग्रहण कर हमें भी परोपकार की भावना को अपनाना चाहिए।

परोपकार करने से आत्मा को सच्चे आनंद की प्राप्ति होती है। दूसरे का कल्याण करने से परोपकारी की आत्मा विस्तृत हो जाती है। उसे अलौकिक आनंद मिलता है। उसके आनंद की तुलना भौतिक सुखों से नहीं की जा सकती। ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों को कहा था-.स्वार्थी बाहरी रूप से भले ही सुखी दिखाई पड़ता है, परंतु उसका मन दुखी और चिंतित रहता है। सच्चा आनंद तो परोपकारियों को प्राप्त होता है।.

भारती अपनी परोपकारी परंपरा के लिए जगत-प्रसिद्ध रहा है। भगवान शंकर ने समुद्र-मंथन में मिले विष का पान करके धरती के कष्ट को स्वयं उठा लिया था। महर्षि दधीचि ने राक्षसों के नाश के लिए अपने शरीर की हड्डियाँ तक दान कर दी थीं। आधुनिक काल में दयानंद, तिलक, गाँधी, सुभाष आदि के उदाहरण हमें लोकहित की प्रेरणा देते हैं।
परोपकार मनुष्य-जीवन को सार्थक बनाता है। आज तक जितने भी मनुष्य महापुरुष कहलाने योग्य हुए हैं, जिनके चित्र हम अपने घरों पर लगाते हैं, या जिनकी हम पूजा करते हैं, वे सब परोपकारी थे। उनकी इसी परोपकार भावना ने उन्हें ऊँचा बनाया, महान बनाया।


5. मेरा भारत महान

[2022, 2024, M.SET – 22]

भारत एक विशाल और विविधतापूर्ण देश है, जिसे प्राचीन समय से ही अपनी संस्कृति, इतिहास और सभ्यता के लिए जाना जाता है। यह देश विश्व में अपनी धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। भारत का इतिहास गौरवमयी रहा है, जहाँ महान सम्राटों और विद्वानों ने जन्म लिया। यहाँ की विविधता न केवल उसके धर्मों, बल्कि उसकी भाषा, कला, साहित्य और रीति-रिवाजों में भी दिखाई देती है।

भारत का सांस्कृतिक धरोहर अत्यंत समृद्ध है। यहाँ विभिन्न त्योहार, जैसे दीपावली, होली, ईद, और क्रिसमस, सभी धर्मों के लोग मिलकर खुशी से मनाते हैं। भारत में कई महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर, किलें, महल और स्मारक हैं, जो उसके गौरवपूर्ण इतिहास की गवाही देते हैं। महात्मा गांधी द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किए गए अहिंसक प्रयासों ने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

भारत की प्राकृतिक सुंदरता भी अद्वितीय है। यहां पहाड़, समंदर, नदियाँ और वन्य जीवन की समृद्धता है, जो पर्यटकों को आकर्षित करती है। भारतीय समाज में भाईचारे और एकता का प्रतीक ‘भारत माता’ की पूजा की जाती है, जो देशवासियों को एकजुट रहने की प्रेरणा देती है।

भारत की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था भी बहुत सुदृढ़ है, जहां लोकतंत्र का पालन किया जाता है और प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों का सम्मान प्राप्त है। भारत ने दुनिया को विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में कई महान योगदान दिए हैं। 
इस प्रकार, भारत न केवल भौगोलिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महान है।

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